Saturday, September 24, 2022

ग़ज़ल क़ाफिया -अत रदीफ - नहीं मिलती।। रुक्न २२१२ २२१२ २२१२ २२ कुदरत नहीं मिलती उसे, कुदरत नहीं मिलती। २ जिस शख्स के सीने में, मुहब्बत नहीं मिलती।। जो ख़र्च से बचता है, ज़रूरत की जगह भी। २ उस शख़्स के घर में कभी, बरकत नहीं मिलती।। हर दुख पे खड़ा रहता है, एक और नया दुख। २ उफ़्फ़ , रंज़ो अलम से हमें, राहत नहीं मिलती।। दो ज़ानू हुआ बैठा, मिलेगा तुम्हें अक्सर। २ उस फूल के जैसी कहीं, आदत नहीं मिलती।। हर शख़्स में बस आग, मुहब्बत की मिली है। २ मुझको किसी सीने में भी, नफरत नहीं मिलती।। मक्ता बतौरे खास माँ-बाप से बेटों को जो मिलती है, वो.."ज्ञानेश"। २ माँ-बाप को बेटों से, सहूलत नहीं मिलती।। ग़ज़लकार ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश" किरतपुरी राजस्व एवं कर निरीक्षक नगर पालिका परिषद बसी किरतपुर जनपद बिजनौर उत्तर प्रदेश सम्पर्क सूत्र- 9719677533 Email id- gyaneshwar533@gmail.com स्वरचित एवं मौलिक ग़ज़ल के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।

Wednesday, April 13, 2022

ग़ज़ल

छोड़ देती है दुनिया सबको रोते हुए।
देखा है नज़रों ने सब कुछ होते हुए।।

फाँसलों को भी कैसे मिटाओगे तुम।
मिल ना पाओगे तुम पास होते हुए।।

हमने आँसू तो बहने से रोके बहुत। 
बह गए हैं वो पल्लू भिगोते हुए।।

अपने ही जब हमसे बिछुड़ने लगे।
धागा बनें माला मोती पिरोते हुए।।

पढ़ी थी तरन्नुम से जो ग़ज़ल आपने।
दिल से ज्ञानेश को भी संजोते हुए।।
ग़ज़लकार
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
राजस्व एवं कर निरीक्षक
ग़ज़ल के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।

Wednesday, April 6, 2022

स्वरचित दोहे

सुप्रभात दोहे प्रस्तुत हैं-

लाज शर्म सब भूलकर, निकल पड़े हैं पाँव।
शहरों को सब भागते, छोड़ चले है गाँव।।

शुद्ध हवा पानी नहीं, शुद्ध नहि खान-पान।
ख़राब शहरों की दशा, गाँव को शुद्ध जान।।

नई नई बीमारियां, फैले है निज धाम।
बीमारी के सामने , आये ना कुछ काम।।

ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी

Monday, January 3, 2022

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

             चाँद चेहरे
उस पे उस विधाता को, आक्रोश आता है ।
जो किसी भी इंसाँ को, बेसबब सताता है।।

रोज़ मर रहा हूं मैं, इस तड़प के ख़ंज़र से।
मेरा क़त्ल क्यों मुन्सिफ, शहर से छुपाता है।।

इस क़दर सताया है, मुझको चाँद चेहरे ने। 
दर्द से कलेजा तक, भाई मुँह को आता है।।

मेरे शहर में ऐसा, एक अजब शराबी है।
रोज़ ही कमाता है, रोज़ ही गँवाता है।।

उससे क्या बताऊँ मैं, अपने दिल की बेताबी।
वो मेरी ज़रूरत का, फायदा उठाता है।।

देख कर उसे "ज्ञानेश", आँख ने कहा दिल से।
इस हसीं से लगता है, हर जनम का नाता है।।

ग़ज़लकार
ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश" किरतपुरी
राजस्व एवं कर निरीक्षक
सम्पर्क सूत्र-

Saturday, January 1, 2022

प्यार ज्ञानेश करना ख़ता तो नहीं।

वैसे मैंने अभी तक, किया तो नहीं।
प्यार ज्ञानेश करना, ख़ता तो नहीं।।

जाने क्यों उनकी नज़रों में, मुजरिम हैं हम।
जबकि कुछ हमसे ऐसा हुआ तो नहीं।।
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी

Tuesday, November 30, 2021

ग़ज़ल

ग़ज़ल

वैसे मैंने अभी तक किया तो नहीं।
प्यार "ज्ञानेश" करना ख़ता तो नहीं।।

आपको  जो भी  कहना था, सब कह दिया?
आपको हमसे अब कुछ , गिला तो नहीं।।

किस लिए मुझपे बाग़ी का इल्ज़ाम है।
झूठ को झूठ कहना,  ख़ता तो नहीं।।

तोहफातन फूल भेजे हैं, किसने हमें।
ये हमारी वफ़ा का, सिला तो नहीं।।

जाने क्यों उनकी नज़रों में, मुजरिम हैं हम।
जबकि कुछ हमसे ऐसा हुआ तो नहीं।

हमने दिल खोलकर रख दिया सामने।
यानि अब आपसे कुछ, छुपा तो नहीं।।

मैं दुआ जानता हूँ, पता तो करो।
उसके लब पे कहीं बद्दुआ तो नहीं।।

स्वरचित एवं मौलिक ग़ज़ल के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।
ग़ज़लकार
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
राजस्व एवं कर निरीक्षक

Sunday, November 28, 2021

नशा मुक्ति पर स्वरचित दोहे

नशा मुक्ति पर कुछ दोहे लिखे हैं-👇 
1-दुनिया में नशा मुक्ति का, हो कोई अभियान।
   जीवन  बचे  कलंक से,   समझो ए नादान।।
2- धूम्रपान से लाभ नहीं, खुद का भी नुक्सान।
    धूम्रपान को त्याग कर, मिलता है सम्मान।।
3- दिल से जो कोशिश करें, छोड़े वो धूम्रपान।
    जीवन सफल बनाइए , छोड़ कर धूम्रपान।।
4- नित नित  बढ़ती है सदा , गृह कलेश की बात।
    दिन काटे कटता नहीं ,  कटै नहीं ये रात।।
5- शराबी जब नशा करे , घर में करें उत्पात।
    तिल-तिल कर मिटती रहे, यह नारी की जात।।
6-खुशियाँ भी ओझल हुईं, सुख मिले नहीं चैन।
   जीवन दूभर हो रहा , दिन हो चाहे रैन।।
7-नशा बना अभिशाप है, हो शरीर का नाश।
   जगत में नशा आज तो, बना गले का फाँस।।
8-कलंक बने समाज में, नशा पाप का मूल।
   घुटन सी महसूस करे,चुभता जैसे शूल।।
9- छोड़ो नशा तुम आज से, करो प्रतिज्ञा आज।
     खुशियों से घर हो भरा, बैठो बीच समाज।।10-नज़रें बच्चों पर रखें, दियो उन्हें समझाय।
      संग नशे का है बुरा, निकट कभी ना जाय।।
11- नशा एक नासूर है, रहिए इससे दूर।
      मान घटे संसार में, साए भी हों दूर।।
12- करिए मदद ग़रीब की,अच्छे कीजै काम।
      ग़ैर का भी हो भला, हो अपना भी नाम।।
13-"ज्ञानेश" इस समाज में, कियो कोई सुधार।
      जीवन सफल बनाइए, कर कोई उपकार।।
            दोहाकार 
ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश" किरतपुरी
बसी किरतपुर
जनपद बिजनौर (उत्तर प्रदेश)